Naveen Jain


कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते हुए आज हमारे देश में 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा की गई है और मैं जानता हूं कि हम सब  खुद कंफ्यूज हो कर भी आपस में एक दूसरे को दिलासा दे रहे हैं | सबको पता है कि इतना आसान नहीं है  एक चारदीवारी के बीच में 21 दिन बिताना, परंतु बीते दिनों के प्रचार-प्रसार ने इतना तो बता ही दिया है कि अगर जीना है तो अंदर रहना होगा |  पूरे देश में करोड़ों परिवारों में इस समय एक ही चर्चा हो रही है कि यह समय किस प्रकार गुजरेगा | कई लोगों के दिमाग में यह सुकून है कि कम से कम उनके परिवार के सारे सदस्य आज एक साथ तो हैं वहीं कुछ परिवारों के दिमाग में अपने उन लोगों के लिए एक चिंता है, जो उनके बीच नहीं हैं बल्कि इसी दुनिया के किसी और कोने में अटके हुए हैं |  परिवार की पूरी अवधारणा बनी भी तो इसीलिए है कि सुख में एक साथ और दुख में  हमसफर | हमारे परिवारों में बहुत से छोटे बच्चे हैं जिन्हें इतने दिन के लिए अंदर बिठाए रखना एक बहुत बड़ा चैलेंज होगा और कई परिवारों में बुजुर्ग लोग हैं जिन्हें आज का यह मंजर देखकर हैरानी हो रही है कि “क्या उन्हें इसी जीवन काल में यह दिन” भी देखना था |  जिन घरों में कोई ना कोई बीमार है या जिनके घरों में कोई गर्भवती औरत है, उनके हैरान परेशान होने के बारे में अंदाजा लगाने में ही तकलीफ होती है |

बस्ती के कुछ परिवार ऐसे भी थे जिनके पास ठीक-ठाक पैसा था और जिनके पास सूचना भी समय पर पहुंच गई थी तो उन्होंने समय रहते ही कुछ सामान रसोई के लिए जोड़  लिया था,  वही बेचारे कुछ परिवार ऐसे भी थे उनके पास पैसा था पर सूचना देर से आई ; कुछ ऐसे थे सूचना का करते भी क्या क्योंकि हाथ में एक धेला भी नहीं था ; कुछ ऐसे अनलकी लोग भी थे जिनके पास ना सूचना थी, ना पैसा और ना ही उनके लिए इतनी सोच विचार करने वाला साया | खैर जो भी है अब यह सिचुएशन तो 21 दिन चलने ही है | खुश तो कोई भी नहीं है  पर अपने बच्चों के चेहरे पर खुशी रखने के लिए तसल्ली दिखानी पड़ेगी | अगर बड़े ही हौसला हार जाएंगे तो कम हौसले वालों  की बैटरी चार्ज रखना मुश्किल हो जाता है | कई परिवार ऐसे हैं जिनमें खाने से भी ज्यादा जरूरी है बीमारों की दवा और दवा भी 7 से 10 दिन से ज्यादा की खरीदना, अगर बस का ना हो तो अगले 21 दिन डरा ही देते हैं |  कुछ लोगों की मुसीबत कई लोगों के लिए बिजनेस का बंपर टाइम भी हो जाता है | ऐसे लोगों को हम भले कितने भी ताने दे दे, लेकिन बहुत ज्यादा फायदा होता दिखता नहीं है |हालांकि जरूरी चीजें मिलती रहेंगी और बाजार में खाना दवाई और ऐसे बहुत सारे सामान की दुकान बंद नहीं होंगी,  यह सब पता होने के बाद भी आपस में हमारा जो एक दूसरे पर जो अविश्वास है, वही उस मौकापरस्त इंसान की सबसे बड़ी ताकत है |अगर मैंने यह समान अभी नहीं लिया तो बाद में नहीं मिलेगा या अभी महंगा मिल रहा है तो ले लेता हूं क्योंकि बाद में तो शायद यह भी नहीं मिलेगा |  इस तरह सामाजिक और आर्थिक रूप से हम लोगों में आपस में जो भेद हैं वह बाजार को भी समझ में आते हैं |

कोरोना वायरस से चिपक कर  बीमार होने का डर हो या भुखमरी से मरने का, दोनों ही स्थितियों में हमें यह मानकर चलना चाहिए कि एक समाज में रहने वाले लोगों को “सुरक्षा चक्र” वाली सिंपल सी बात को समझकर ही चलना चाहिए I| जैसे हम  कहा करते थे कि यदि कोई बच्चा पोलियो की  डोज नहीं पीएगा तो बाकी बच्चों को भी पोलियो होने का डर रहेगा, उसी प्रकार से यदि हममें से कोई व्यक्ति कोरोना के समय में अपना ध्यान नहीं रखता है तो वह औरों को भी  रोग फैला सकता है |  एक व्यक्ति द्वारा की गई लापरवाही से वह अपने आसपास के लोगों के लिए मुसीबत पैदा कर सकता है,  यह बात जितनी एक आपस में फैलने वाले कोरोना वायरस से उत्पन्न होने वाले रोग पर लागू होती है उतनी ही यह बात आपस में एक दूसरे पर विश्वास ने कर के अवसरवादियों को मौका देकर उन्हें कालाबाजारी का फायदा उठाने के लिए सशक्त करने पर भी साबित होती है |  क्या कुछ परिवारों में भुखमरी जैसे हालात लंबे समय तक संपन्नता के साथ जीने वाले लोगों के लॉन्ग टर्म सुरक्षा चक्र में सेंधमारी नहीं करेंगे,  इस पर विचार करना बहुत जरूरी है |  हमें इस समय सह अस्तित्व के सिद्धांत को बहुत अच्छे से समझना और पूरे मनन के साथ लागू करने का प्रयास भी करना होगा | कोई जरूरी नहीं है कि समय परिवार के सदस्यों की वह सारी ख्वाहिशें पूरी की जाए जो वह सामान्यता एक नॉर्मल टाइम में बिना किसी बड़ी बाधा के मुकम्मल कर लिया करते थे |  संकट इस समय केवल उसका नहीं है जिसके पास सामाजिक या आर्थिक रूप से संपन्नता नहीं है,  बल्कि यह ऐसा समय है जब हमें हमारे आसपास के उन सब लोगों की भी परवाह करनी होगी जो किन्हीं भी कारणों से इन परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं है |


क्योंकि इस बार की परिस्थिति अलग प्रकार की है और यह उन परिस्थितियों से बिल्कुल अलग है जो किसी इलाके में बाढ़ सूखे या दंगों के बाद पैदा होती है,  इसलिए अगर इन सब लोगों की भलाई के लिए हम सब लोगों को मिलकर कुछ करना भी है तो उसके लिए हमें बहुत सारी सावधानियां भी बरतनी होंगी जो प्राय हमें पहले वाली परिस्थितियों में महसूस भी नहीं होती थी I एक दूसरे से फिजिकल दूरी मेंटेन करते हुए मानसिक एकजुटता के साथ सामाजिक सरोकार के लिए कुछ त्याग करने की भावना अभी से तैयार करनी होगी वरना ऐसा भी हो सकता है कि हम अभी भी तीन सब्जियों की थाली खा रहे हो और कुछ लोगों के पास सूखी रोटी और नमक भी ना हो |  मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा करने के लिए हम में से किसी को भी बहुत ज्यादा आर्थिक संसाधन की आवश्यकता नहीं होगी और ना ही हमें हमारे बच्चों के मुंह के निवाले छीनने होंगे केवल हमें हमारे घरों में हल्का सा अनुशासन कायम करना होगा और ध्यान से असेसमेंट करने के बाद हम सब लोग मिलकर कुछ परिवारों या कुछ बेसहारों को भी इस प्रकार के  दुष्कर समय को  बिताने में अपना सहयोग दे सकते हैं |

यकीन मानिए अगर हम ऐसा होमवर्क करने में सफल नहीं हुए तो हो सकता है कि हम अगली पीढ़ियों को यह तो बता सके कि हम कोरोना वायरस से जीत गए थे लेकिन शायद अपने बच्चों की आंख से आंख मिलाकर इंसानियत को नहीं बचा पाने का किस्सा कभी नहीं बता पाएंगे |


नवीन जैन, आईएएस
प्रबंध निदेशक
राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम

 

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